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-------------अग्रवाल जाति का इतिहास -------------

अग्रवाल भारतवर्ष की वैश्य जाति का एक शाखा का नाम है। इस जाति के लोग इस समय सारे भारतवर्ष में व्यवसाय और उद्योग धंधों की वजह से फैले हुए हैं। देश के बड़े बड़े उद्योग अधिकतर इसी जाति के हाथों में है।

अग्रवाल जाति की उत्पति

अग्रवाल जाति के पूर्वज प्राचीन काल मे ष्अगरष् नामक सुगंधित लकड़ी का बड़े पैमाने पर व्यापार करते थे। इसी से ये लोग अगरवाल नाम से प्रसिद्ध हुए। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी इस बात का पता चलता है कि प्राचीन भारत में पूजा पद्धति में अगर का उपयोग बहुतायत से किया जाता था और इसका व्यापार बहुत सामान्य बात थी। यह लकड़ी वणिक जाति के द्वारा ही बहुत बड़ी मात्रा में देश में तथा विदेश में बेची जाती थी। यह मानने योग्य बात है कि वैश्य जाति के हजारों परिवार अगर का व्यापार करते होंगे ऐसे में यह उनका परिचय बन गया।
यह लकड़ी खरीदने के लिए उन्हें पूरे भारत में जाना पड़ता था और उसको बेचने के लिए भी यह जाति पूरे देश का भ्रमण करती होगी। वैश्य जाति के जिस वर्ग का अगर के व्यपार से अधिक सम्बन्ध थाए संभवतः उन्हें अग्रवाल कहा जाने लगा। अग्रवालों के नामकरण के सम्बन्ध में एक और मत यह है कि अग्रसेन नामक राजा किसी समय में इस देश में बहुत प्रसिद्ध और प्रतापी शासक हुएए उनकी राजधानी को अगरोहा के नाम से जाना जाता था। इन्हीं अग्रसेन के नाम पर अग्रवाल जाति की स्थापना हुई।
पौराणिक अख्यानों और किवदंतियों के अनुसार अग्रसेन महाराज का वंशवृक्ष ब्रह्मा से ही प्रारंभ हो जाता है। शहाबुद्दीन गौरी द्वारा अगरोहा का विनाश किए जाने के बाद वहां से अग्रवाल जाति के लोग निकल कर भारत के भिन्न.भिन्न प्रदेशों में जाकर बस गए। जो Baniya caste परिवार राजस्थान में आकर बस गऐ वे मारवाणी अग्रवाल कहलाए। उन्होंने यहां आकर अपने आप को शुद्ध व्यापारिक जीवन में ढाल लिया। जो लोग पंजाब और उत्तरप्रदेश में आकर बसे उन्होंने राजदरबारों में उच्च स्थान पाया। इनमें राय रामप्रताप और लाला अमीचंद जैसे प्रमुख नाम बने। इसके अलावा समय के साथ अग्रवाल समाज के लोग कलकत्ताए आसाम और मुंबई तक जाकर बसे और वहां भी उन्होंने अपने व्यापारिक चातुर्य से अच्छा नाम कमाया।

अग्रवालों का शहर अगरोहा

अगरोहा हिसार जिले का एक कस्बा है जो किसी समय में बड़ा शहर हुआ करता था। इसी शहर को अग्रवाल जाति की उत्पत्ति का केन्द्र माना जाता है। अगरोहा वैसे काफी प्राचीन नगर रहा है। करीब 22 सौ साल पहले यह बहुत शक्तिशाली भी रहा। आज भी अगरोहा गांव से कुछ दूरी पर इस प्राचीन नगर के वैभवशाली अवशेष और खण्डहर पाए जाते हैं। अनुमान के अनुसार जिस समय घाघरा नदी बारहमासी हुआ करती थीए उस समय यह व्यापार और ऐष्वर्य का प्रमुख केन्द्र हुआ करता होगा। इस स्थान की खुदाई के दौरान भी बड़े.बड़े भवनों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। शहाबुद्दीन गौरी ने 1194.95 में इस नगर पर कब्जा किया। यहां मिले सिक्को से यह पता चलता है कि पटियाला नरेश राजा अमरसिंह ने अगरोहा के खण्डहरों पर एक किले का निर्माण करवाया। कौन थे अग्रवालों के पूर्वज महाराज अग्रसेनघ् महाराज अग्रसेन को अग्रवाल समाज का आदि पुरूष माना जाता है। इनके सम्बन्ध में अनेकानेक किवदंतियां और कथाएं कही जाती हैं। अग्रवाल समाज द्वारा हर साल आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को अग्रसेन जयंती मनाई जाती है। हालांकि महाराज अग्रसेन के सम्बन्ध में कोई ऐतिहासिक दस्तावेज प्राप्त नहीं होता है।